सम्मेद शिखर जी की विशेषताएँ –
- श्री सम्मेद शिखर पर्वत की वंदना २७ किलोमीटर एवं परिक्रमा ५४ किलोमीटर है ।
- जो भव्य जीव होते है,वह तीर्थक्षेत्र की प्रत्यक्ष -परोक्ष वंदना करते ही है ।
- एक कल्प काल के चतुर्थ काल में यहाँ से २४ तीर्थंकर और असंख्यात मुनिराज मोक्ष जाते है ।
- यह तीर्थक्षेत्र अनंतानंत आचार्यों,पर्मेष्ठियों की तपस्या एवं निर्वाण स्थली है ।
- इस क्षेत्र की स्वयं वंदना करना,आर्थिक द्रष्टि से एवं स्वास्थ्य की द्रष्टि से कमजोर व्यक्तियों को दना कराने में सहायता करना, भव्य जीवो को अधिकतम पुण्य कराता है ।
- अनादिकाल से यह जीव मिथ्यात्व के फलस्वरूप चौरासी लाख योनियों में तथा चारो गतियों में जन्म-मरण कर रहा है |
- बहुत जन्मो के पुण्य सहयोग से हमें दुर्लभ मनुष्य गति,श्रावक कुल,जिनधर्म समागम,सत्संगति और जिन श्रद्धा प्राप्त हुई है ।इसका सदुपयोग अवश्य करें ।
- प्रत्येक श्रावक का परम कर्तव्य है कि वह इस क्षेत्र की प्रत्यक्ष -परोक्ष वंदना अवश्य करें ।
- तीर्थराज श्री सम्मेद शिखर जी की वंदना से शुभ कर्मो का आम्रव एवं पाप कर्मो का क्षय होता है ।
- जब भी हम इस क्षेत्र की प्रत्यक्ष रूप से वंदना करते है तब धार्मिक मर्यादाए,आर्थिक द्रष्टि एवं आचरण बनाये रखना चाहिए ।
- हम नित्य ऐसी भावना भाए कि शाश्वत तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी की वंदना हमारे जीवन में अवश्य होवे ।
- सफ़ेद कपड़ो से यात्रा करना मोक्ष प्राप्ति का फल देता है ।